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तहसीलदार- पटवारी को मिला अधिकार जमीन दलालों की चांदी!

03-दिसंबर,2020
बिलासपुर-{जनहित न्यूज़} जमीन खरीद बिक्री के बाद नामांतरण की प्रक्रिया ऑनलाइन कर दी गई है। ऑनलाइन व्यवस्था में ग्राम पंचायतों का अधिकार समाप्त हो चुका है। तहसीलदार और पटवारी सर्वेसर्वा बन चुके हैं। बिना ग्राम पंचायत के प्रस्ताव के भी नामांतरण का अधिकार तहसीलदार-पटवारी को मिल चुका है। इस नई व्यवस्था को उचित नहीं माना जा रहा है।
जिले में राजस्व विभाग के कामकाज को लेकर सर्वाधिक शिकायतें है। नियम विरुद्ध तरीके से जमीन की खरीद बिक्री तथा पंचायत की सहमति के बगैर नामांतरण और सामान्य वर्ग के लोगों द्वारा आदिवासियों के नाम पर जमीन खरीद ऊंचे दर पर शासकीय सेवारत आदिवासी समाज के लोगों को बिक्री किए जाने का धंधा यहां फल फूल रहा है। राजस्व विभाग के अधिकारी कर्मचारियों द्वारा भी जमीन दलालों के साथ मिलकर अवैध गतिविधियों को संरक्षण दिए जाने की शिकायत पुरानी है।
राजस्व न्यायालयों में भी ज्यादातर प्रकरण उक्त विवादों से ही जुड़ी हुई है। कहीं सौदा गांव के भीतर की जमीन का कर सड़क किनारे की बेशकीमती जमीन का रजिस्ट्री करा नामांतरण करा लेने की है तो कहीं सौदे के विपरीत ज्यादा जमीन की रजिस्ट्री करा लेने का आरोप है। इन सबके बीच राज्य सरकार द्वारा राजस्व रिकार्ड दुरुस्तीकरण व्यवस्था में पारदर्शिता के नाम पर ऑनलाइन नामांतरण की व्यवस्था लागू कर दी है। यह व्यवस्था जमीन दलालों के लिए ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकती है।
अभी तक ग्राम पंचायतों को नामांतरण की व्यवस्था में बड़ा अधिकार मिला हुआ था। जब तक वे प्रस्ताव पारित नहीं करते तब तक किसी के भी नाम पर जमीन का नामांतरण नहीं हो सकता था।ग्राम पंचायतों को यह अधिकार प्राप्त था कि गांव में किसी भी प्रकार की जमीन खरीद बिक्री तथा किसी की मृत्यु के पश्चात नामांतरण के लिए फौती चढ़ाने पंचायत के सभी प्रतिनिधियों को अवगत कराया जाता था।

यह पारदर्शी व्यवस्था थी। पंचायत प्रतिनिधियों के अलावा उस गांव में रहने वाले लोगों को भी जानकारी मिल जाती थी। पंचायत से बकायदा प्रस्ताव पारित होता था।बिना पंचायत के प्रस्ताव के नामांतरण नही हो सकता था,
लेकिन अब पंचायतों का यह अधिकार समाप्त हो चुका है। सीधे तहसीलदार और पटवारी बगैर ग्राम पंचायत के प्रस्ताव के ऑनलाइन व्यवस्था में नामांतरण कर सकते हैं, इससे गांव-गांव में विवाद और बढ़ने की संभावना है।

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