खून से लथपथ महिला के दर्शन के लिए उमड़ा जनसैलाब!
4-Sep,2020
रतनपुर-[जनहित न्यूज़] अशिक्षा और अज्ञानता इंसान को धर्म भीरु और धार्मिक उन्मादी के साथ अंध श्रद्धालु भी बना देता है। नतीजतन ऐसे लोग इस तरह के कदम उठा लेते हैं जिससे वे खुद के लिए संकट को निमंत्रण देते हैं। ऐसी ही एक घटना रतनपुर क्षेत्र के ग्राम नेवसा में हुई जहां एक महिला ने अपनी जीभ काट कर बहिया महादेव शिव मंदिर में अर्पित कर दी। ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह की मान्यताएं प्रचलित है। यह एक प्रकार से बलि प्रथा का ही अंश है, जिसमें श्रद्धा अतिरेक में लोगों को लगता है कि अपना अंग भंग कर या अंगदान और अर्पित कर वे देवी–देवता को प्रसन्न कर सकते हैं। बताया जा रहा है कि नेवसा में रहने वाली रामकली सूर्यवंशी पति भगवान दिन सूर्यवंशी उम्र 55 वर्ष शुक्रवार तड़के सोकर उठी। जिसके बाद स्नान आदि से निवृत होकर वह गांव के ही बहिया महादेव शिव मंदिर पहुंची, जहां पूजा अर्चना के पश्चात उसने अपने ही हाथों ब्लेड से अपनी जीभ काटकर कथित तौर पर भगवान शिव को अर्पित कर दी।
इस घटना के बाद महिला वही बेसुध होकर पड़ी रही। जीभ कटने की वजह से पूरे मंदिर परिसर में हर तरफ खून फैल गया। कुछ घंटे बाद जब अन्य लोग पूजा अर्चना के लिए मंदिर पहुंचे तो उन्होंने यह नजारा देखा, जिसके बाद यहां लोगों की भीड़ जुट गई। गांव में इस अंधश्रद्धा की आलोचना की जगह इसे महिमामंडित करने का खेल शुरू हो गया। लोगों ने यह भी बताया कि पिछले वर्ष भी इसी महिला ने इसी तरह जीभ काटकर चढ़ाया था। मानो यह कार्य कोई बहुत बड़ी उपलब्धि जिसके चलते महिला का महिमामंडन आरंभ कर दिया गया। संभवतः ग्रामीणों के इसी प्रतिक्रिया के चलते ही महिला ने दोबारा यह कदम उठाया होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में किसी कामना, इच्छा की पूर्ति के लिए दैवीय शक्ति से मन्नत मांगने की परंपरा है और इसके लिए इसी तरह का बलिदान भी दिया जाता है।
आज भी क्षेत्र के ग्रामीण अंचलों में धार्मिक रीति रिवाज, मंदिर और अन्य आस्था केंद्रों को लेकर कई दंत कथाएं और किवदंतिया विख्यात है । जिस बहिया (सरफिरे) महादेव के मंदिर में महिला ने अपनी जीभ अर्पित की उसे लेकर भी गांव में कई किस्से कहानियां सुनाई जाती है। कहा जाता है कि यहां मंदिर परिसर में साफ सफाई करने वाले की मानसिक स्थिति अपने आप बिगड़ जाती थी, इसके बाद से मंदिर परिसर की साफ-सफाई हमेशा के लिए बंद कर दी गई और महादेव का नामकरण ही बहिया कर दिया गया। तो वही यहां खुदाई में एक शिवलिंग भी प्राप्त हुआ था जो दो भागों में विभक्त था। इसके बाद लोगों ने इसे शिव और पार्वती मानकर उनकी पूजा अर्चना आरंभ कर दी। ग्रामीणों का विश्वास है कि इसी शिव पार्वती की कृपा से ही गांव में कोई महामारी नहीं फैलती। धर्मपालक होने और धर्मांध होने में जो फर्क है। इसी फर्क ने महिला को इस तरह के कार्य के लिए प्रेरित किया है। ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर महिलाएं इसी तरह अपनी जीभ अर्पित करती है। बुरी बात यह है कि ऐसा करने वाली महिला अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन जाती है, जिसके खतरनाक नतीजे भी सामने आ सकते हैं।ग्रामीण क्षेत्रों में अंधश्रद्धा उन्मूलन के प्रयास ना होने के ही ऐसी घटनाएंन बढ़ी है। दुख का विषय यह है कि इस तरह की घटनाओं को हतोत्साहित करने की बजाय ग्रामीण इसे महिमामंडित कर उल्टे इस तरह के कार्य करने वालों को ही पूजने लगते है। इस मामले में भी ऐसा ही होता दिख रहा है। धार्मिक आस्था का विषय होने की वजह से पुलिस और प्रशासन ने भी अब तक मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया है जो आश्चर्यजनक है। मंदिर में अपना जीभ चढ़ाने के कारण ढेर सारा खून बह जाने के बाद भी महिला ना तो मंदिर से हटने को तैयार है और ना ही अपना इलाज कराने को। ग्रामीण भी इस दिशा में कोई खास प्रयास नहीं कर रहे। जिस कारण महिला की जान भी जा सकती है। अगर इसे कोई श्रद्धा भक्ति कहता है तो फिर उसकी सोच को केवल प्रणाम ही किया जा सकता है। एक तरफ ईश्वर को माता पिता कहा जाता है अगर ऐसा है तो फिर कौन माता-पिता होंगे जो अपनी संतान के अंग भंग होने से प्रसन्न होते है। इतनी सी बात अगर इन अंध श्रद्धालुओं और धर्म भीरुओ को समझ आ जाए तो फिर इस तरह की घटनाएं सामने ना आए। फिलहाल नेवसा में इस घटना के बाद ग्रामीणों की भीड़ महिला के दर्शन के लिए उमड़ पड़ी है जो एक स्वस्थ समाज के लिए चिंता का विषय होना चाहिए।