सरकारी ज़मीन की बंदरबांट का हुआ खुलासा…! वेंकट अग्रवाल ने उठाई आवाज…!
बिलासपुर{जनहित न्यूज}बिलासपुर कोटा विकासखंड के ग्राम चंगोरी में शासकीय भूमि को लेकर बड़ा विवाद सामने आया है। तहसीलदार की अदालत में मामला विचाराधीन होने के बावजूद वन अधिकार पट्टा जारी कर दिया गया, जिससे प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं।
2003 से खसरा नंबर 408, रकबा 0.263 हेक्टेयर भूमि पर वेंकट अग्रवाल का वैध कब्जा था, जो राजस्व दस्तावेजों में भी दर्ज था। इसी भूमि पर 17 साल बाद अचानक प्रक्रिया शुरू की गई और आदिवासी विभाग से साधमति बाई के नाम पर पट्टा जारी हो गया, जबकि मामले को लेकर विवाद पहले से ही तहसील न्यायालय में लंबित था।
164 में सिर्फ एक को मिला पट्टा संदेह के घेरे में प्रक्रिया
2005 में पंचायत ने 164 पात्रों के लिए पट्टे का प्रस्ताव पारित किया था, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से केवल एक साधमति बाई को ही पट्टा मिला। खास बात यह है कि साधमति बाई, उस समय पंचायत के सरपंच की पत्नी और तत्कालीन तहसील रीडर लेखराम मरावी की माता हैं। जबकि बाकी 163 पात्र वंचित रह गए।
ग्राम सभा, प्रस्ताव और फिर पट्टा नियमों की अनदेखी
2020 में ग्राम सभा आयोजित कर प्रस्ताव तैयार किया गया और एसडीएम कार्यालय भेजा गया। यहां से यह फाइल आदिवासी विभाग तक पहुँची और वन अधिकार पट्टा जारी कर दिया गया, जबकि मामला तहसील न्यायालय में चल रहा था।
वेंकट अग्रवाल ने उठाई आवाज, प्रशासन की जांच में आया मामला
शिकायतकर्ता वेंकट अग्रवाल ने एसडीएम कार्यालय में शिकायत दर्ज कराते हुए बताया कि यह पट्टा पूर्णतः नियमों की अवहेलना कर जारी किया गया है। मामले को गंभीरता से लेते हुए एसडीएम नितिन तिवारी ने जांच के निर्देश देते हुए स्पष्ट किया कि यदि प्रक्रिया दोषपूर्ण पाई गई तो पट्टा निरस्त किया जाएगा।
प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल
यह प्रकरण न केवल ग्राम स्तर पर सत्ता के दुरुपयोग को उजागर करता है, बल्कि इससे यह भी स्पष्ट होता है कि कैसे प्रभावशाली लोग नियमों को ताक पर रखकर सरकारी ज़मीनों पर अधिकार जमाते हैं।
अब देखना यह है कि जांच के बाद दोषियों पर क्या कार्रवाई होती है और क्या वंचित पात्रों को न्याय मिल पाता है या नहीं…?



