वेंडर्स का आरोप भाजपा का पलटवार…!
सच्चाई की तलाश में उलझा सच…!
रायपुर{जनहित न्यूज़}छत्तीसगढ़ राज्य अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण (क्रेडा) इन दिनों एक गंभीर आरोप और सियासी घमासान के केंद्र में है। विभाग के अध्यक्ष और भाजपा नेता भूपेंद्र सवन्नी पर कई ठेकेदारों ने 3% कमीशन की मांग और धमकियों का आरोप लगाया है। वेंडर्स का दावा है कि उन्होंने अपने कार्यों को नियमानुसार पूर्ण किया, बावजूद इसके भुगतान के एवज में उनसे जबरन पैसे मांगे जा रहे हैं। विरोध करने पर ब्लैकलिस्टिंग, नोटिस और जांच की धमकियां मिल रही हैं।
वेंडर्स ने अपनी शिकायत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को भेजी है। शिकायत में आरोप है कि इस प्रक्रिया को सवन्नी के निजी सहायक वैभव दुबे के माध्यम से अंजाम दिया गया।
दस्तावेज़ों के साथ पहुंचे वेंडर्स, निष्पक्ष जांच
की मांग:
शिकायतकर्ताओं ने अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए दस्तावेज़ भी प्रस्तुत किए हैं और मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है। वेंडर्स का कहना है कि यदि इस तरह की मांगें और दबाव जारी रहे, तो ईमानदारी से काम करने वाले ठेकेदारों का हौंसला टूट जाएगा और क्रेडा जैसी संस्थाएं अपनी साख खो देंगी।
भाजपा का कड़ा पलटवार कांग्रेस का फर्जी ड्रामा:
इस पूरे प्रकरण पर भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। भाजपा प्रवक्ता और पूर्व विधायक रंजना साहू ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोलते हुए कहा… फर्जी कांग्रेस अपने ही भ्रष्टाचार से ध्यान भटकाने के लिए बिना नाम-पते की
मनगढ़ंत शिकायतें करवा रही है। लेकिन जनता अब जागरूक है क्रेडा की रजिस्टर्ड ठेकेदार यूनियन ने भी आरोपों को झूठा बताया
है। कांग्रेस की ये साजिशें अब नहीं चलेंगी।
रंजना साहू ने यह भी कहा कि कांग्रेस शासनकाल में विभागों में कमीशन रेट तय थे और अब जब भाजपा सरकार ने सख्ती दिखाई है, तो वही लोग झूठी शिकायतें फैलाकर माहौल बिगाड़ना चाहते हैं।
अब सच्चाई किसके पक्ष में?
इस पूरे मामले में एक ओर जहां ठेकेदार डर और दबाव की बात कर रहे हैं, वहीं भाजपा इसे राजनीतिक साजिश बता रही है। मामला अब राज्य की राजनीति का हॉट टॉपिक बन गया है।
अगर आरोप सही हैं, तो यह क्रेडा जैसे संस्था की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।
अगर शिकायतें झूठी हैं, तो यह राजनीतिक षड्यंत्र का गंभीर मामला हो सकता है।
इस प्रकरण ने सिर्फ एक विभाग या नेता को नहीं, बल्कि राजनीतिक नैतिकता, प्रशासनिक पारदर्शिता और लोकतंत्रिक जवाबदेही पर बहस छेड़ दी है। अब निगाहें इस बात पर हैं कि सरकार और जांच एजेंसियां कितनी पारदर्शिता से जांच करती हैं और क्या वाकई दोषी सामने आते हैं, या यह केवल एक और राजनीतिक नौटंकी बनकर रह जाएगा।
जवाबदेही की घड़ी है आरोप लगाने वालों से भी और आरोप झुठलाने वालों से भी…?

