पढ़ रहे मासूम बच्चों के सिर पर गिरा जर्जर छत का प्लास्टर…! दो नन्हे विद्यार्थी हुए लहूलुहान…! आखिर जिम्मेदार कौन…?
मुंगेली-{जनहित न्यूज} मुंगेली विकासखंड के ग्राम बरदुली स्थित शासकीय प्राथमिक शाला में शुक्रवार को वह भयावह मंजर देखने को मिला, जिसे किसी भी अभिभावक के लिए सोचना भी डरावना है। कक्षा में पढ़ रहे मासूम बच्चों के सिर पर अचानक जर्जर छत का प्लास्टर गिर पड़ा, जिससे दो नन्हे विद्यार्थी हिमांशु दिवाकर और अंशिका दिवाकर लहूलुहान हो गए।
शासन के साफ-साफ निर्देश हैं कि जर्जर भवनों में किसी भी कीमत पर कक्षाएं न चलें, लेकिन स्थानीय प्रशासन की सुस्ती और शिक्षा विभाग की बेरुखी ने इस आदेश को कचरे की टोकरी में डाल दिया। नतीजा मासूमों की जान दांव पर लग गई।
घटनास्थल पर खुद पहुंचे कलेक्टर, लिया पूरा घटनाक्रम सूचना मिलते ही कलेक्टर कुन्दन कुमार और जिला पंचायत सीईओ प्रभाकर पांडेय तत्काल मौके पर पहुंचे। उन्होंने घायल बच्चों से मुलाकात कर उनकी हालत पूछी और मौके पर मौजूद स्वास्थ्य अमले को बेहतर प्राथमिक उपचार के निर्देश दिए। कलेक्टर ने साफ चेतावनी दी कि बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

सीएमएचओ ने राहत की सांस देते हुए बताया कि दोनों बच्चे अब खतरे से बाहर हैं, लेकिन घटना ने प्रशासनिक लापरवाही की पोल खोल दी।
जिम्मेदार अधिकारियों पर गिरी गाज
कलेक्टर ने मौके पर ही शिक्षा विभाग के अधिकारियों को जमकर फटकार लगाई।
उन्होंने विकासखंड शिक्षा अधिकारी जितेंद्र बावरे, बीआरसी सूर्यकांत उपाध्याय, संकुल समन्वयक शत्रुघ्न साहू और प्रधान पाठक अखिलेश शर्मा को नोटिस जारी करने के निर्देश दिए।
जिला शिक्षा अधिकारी और डीएमसी समग्र शिक्षा को सख्त लहजे में कहा कि जिले में कहीं भी जर्जर भवनों में पढ़ाई न हो, अन्यथा कठोर कार्रवाई तय है।
बच्चों से मिले, बढ़ाया हौसला
निरीक्षण के दौरान कलेक्टर ने बच्चों से बातचीत की, उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए चॉकलेट और बिस्किट दिए।

एक भावुक पल तब आया जब बच्चों को यह पता चला कि उनके सामने बैठे व्यक्ति ही जिले के कलेक्टर हैं बच्चों की आंखों में चमक और चेहरे पर मुस्कान लौट आई।
जनता का सवाल आखिर जिम्मेदार कौन?
यह घटना सिर्फ एक स्कूल की नहीं, बल्कि पूरे तंत्र की नाकामी का सबूत है। शासन के आदेश हवा में उड़ाना, बच्चों की सुरक्षा को ताक पर रखना और हादसे के बाद कागजी कार्रवाई करना यही हमारी प्रशासनिक कार्यशैली बन चुकी है।

सवाल उठता है कि अगर कलेक्टर मौके पर न पहुंचते, तो क्या जिम्मेदार अधिकारियों को नींद खुलती?
क्या हमें अगली बार किसी बड़े हादसे का इंतजार करना होगा, ताकि इस सुस्त मशीनरी को झटका लगे?

