श्री गुप्ता का पुनित कार्य अद्वितीय सामाजिक योगदान बना प्रेरणा का स्रोत…!
बिलासपुर-[जनहित न्यूज़] “जाना तो सबको है, पर जाते-जाते किसी के काम आ जाना ही असली मानवता है।”
तोरवा निवासी घनश्याम प्रसाद गुप्ता (जन्म: 07 मई 1946) ने इस कथन को अपने जीवन की अंतिम इच्छा बनाकर समाज के सामने एक प्रेरणादायी उदाहरण प्रस्तुत किया। उनके निधन से एक दिन पूर्व उन्होंने स्वेच्छा से देहदान की घोषणा की, जिसे उनके परिजनों द्वारा पूरी गरिमा और संवेदनशीलता के साथ पूर्ण किया गया।
परिवारजनों सुधीर गुप्ता, शिशिर गुप्ता एवं हेमंत गुप्ता (बसंत साड़ी सेंटर, सदर बाजार) ने स्व. श्री गुप्ता की अंतिम इच्छा से सिम्स अस्पताल के अधिष्ठाता डॉ. रमणेश मूर्ति को अवगत कराया। तत्पश्चात एनाटॉमी विभाग प्रभारी डॉ. अमित श्रीवास्तव के नेतृत्व में आवश्यक दस्तावेजी प्रक्रिया पूर्ण कर यह पुण्य कार्य विधिवत संपन्न किया गया।
चिकित्सा विज्ञान को मिलेगा अमूल्य उपहार
श्री गुप्ता का यह निर्णय न केवल मानवता की सेवा है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के चिकित्सकों के लिए ज्ञान का स्थायी स्रोत बन जाएगा। मेडिकल की पढ़ाई के प्रारंभिक चरण में छात्र कैडावेरिक शपथ लेते हैं, जिसमें वे मृत शरीर को अपना प्रथम गुरु मानते हुए उसे पूर्ण श्रद्धा और मर्यादा के साथ अध्ययन करने का संकल्प लेते हैं।

एनाटॉमी विभाग में उनका यह देहदान
एमबीबीएस विद्यार्थियों के अध्ययन, अनुसंधान और प्रयोग के लिए अत्यंत उपयोगी होगा। यह योगदान एक संजीवनी की तरह चिकित्सा शिक्षा को सशक्त बनाएगा।
श्रद्धांजलि और सम्मान:-
इस अवसर पर डॉ. लखन सिंह, डॉ. मधुमिता मूर्ति, डॉ. शिक्षा जांगड़े, डॉ. वीणा मोटवानी, डॉ. कमलजीत बाशन, डॉ. निष्ठा सिंह सहित अनेक चिकित्सकगण और दिवंगत के परिजन उपस्थित रहे। सिम्स परिवार ने श्री गुप्ता के इस प्रेरणादायी निर्णय पर गहन कृतज्ञता व्यक्त करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।

देहदान: मृत्यु के बाद भी जीवन देने की परंपरा “मरने के बाद भी जीवित रहना है तो अंगदान और देहदान को अपनाएं।” घनश्याम प्रसाद गुप्ता का यह स्वेच्छा से किया गया देहदान समाज के लिए संदेश है कि शरीर का अंत जीवन का अंत नहीं है।
यदि चाहें तो आप अपने अस्तित्व को शिक्षा, सेवा और मानवता का वरदान बना सकते हैं।
नमन है ऐसे महान आत्मा को, जिनकी मृत्यु भी जीवन के दीप जलाकर गई।

