
संयुक्त रेलकर्मी मोर्चा के बैनर तले किया गया विरोध प्रदर्शन
August 9, 2020
बिलासपुर-[जनहित न्यूज़] कोविड-19 संक्रमण काल मे भी रेलवे कर्मचारी सरकारी गाइडलाइन का उल्लंघन कर आंदोलन कर रहे हैं। बिलासपुर रेल कर्मचारियों का यूनियन रेलवे के कथित निजी करण की खिलाफत कर रहा है। आमतौर पर एक दूसरे के धुर विरोधी यूनियन के संगठन भी इस मुद्दे पर कंधे से कंधा मिलाए खड़े नजर आ रहे हैं। संयुक्त रेलकर्मी मोर्चा के बैनर तले बिलासपुर रेलवे स्टेशन के वीआईपी गेट के सामने एकत्र रेलकर्मी, रेलवे और केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते देखे गए। इनका विरोध है कि सरकार धीरे-धीरे रेलवे का निजीकरण कर रही है । कुछ रूट पर कुछ विशेष ट्रेनों का परिचालन निजी हाथों में दिए जाने के बाद रेलकर्मी इस बात से डरे हुए हैं कि उन्हें मिलने वाली सुविधाओं में कमी हो सकती है। असल में रेलकर्मी बात तो रेलवे हित की कर रहे हैं लेकिन उनका मकसद स्व हित है। उन्हें डर है की रेलवे की नौकरी के रूप में उन्हें जो सुरक्षा, सुविधा और सुनिश्चितता हांसिल है वह निजीकरण के बाद खत्म हो जाएगी।

रेलवे हो या फिर कोई और सरकारी संस्था ,सब जानते हैं कि सरकारी कर्मचारियों में कार्य निष्पादन को लेकर गंभीरता का अभाव रहता है, जबकि वही काम निजी क्षेत्र के कर्मचारी पूरी तत्परता से करते हैं। जबकि इसके एवज में रेल कर्मियों को भारी वेतन भी मिलता है। इसके अलावा यात्रा सुविधा, स्वास्थ्य सुविधाएं, प्रोविडेंट फंड, पेंशन जैसी सुविधाएं भी हासिल है। लेकिन फिर भी अधिकांश रेल कर्मियों की कार्यशैली पुराने ढर्रे पर ही नजर आती है। यही कारण है की रेलवे के कुछ हिस्सों को निजी हाथों में दिया जा रहा है। हालांकि केंद्र सरकार बार-बार दोहराती रही है की सरकार रेलवे का निजीकरण करने नहीं जा रही। पर फिर भी इस मुद्दे को बेवजह उछाल कर उसी संस्था को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है जिसके भलाई का यह दंभ भर रहे हैं। तो वही बहती गंगा में हाथ धोने कांग्रेसी भी इनके समर्थन में खड़े नजर आये हैं। आमतौर पर रेलवे और नगर निगम का कोई संबंध नहीं है लेकिन रविवार को रेल कर्मियों के इस आंदोलन को समर्थन देने बिलासपुर महापौर रामशरण यादव और कई कांग्रेसी नेता भी मौके पर पहुंच गए। शायद उन्हें लगता है इस तरह से भी केंद्र और मोदी सरकार का विरोध किया जा सकता है और कांग्रेसी यह अवसर भला कैसे हाथ से जाने देते।
पूरे देश में लगातार आरक्षण समाप्त करने की मांग उठ रही है लेकिन कोई भी सरकार इसे समाप्त नहीं कर सकती। पिछले समय में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश से ही जिस तरह का हंगामा बरपा था उससे इसे समझा जा सकता है। इसलिए आरक्षण को समाप्त करने का एक तरीका निजी करण भी है। क्योंकि रेलवे हो या कोई और सरकारी उपक्रम , इस के निजीकरण के बाद उसमें आरक्षण प्रभावी नहीं होगा । बल्कि योग्य कर्मियों की पूछ परख होगी। शायद इसी बात से यह रेलकर्मी सहमे हुए हैं। लाखों रुपए वेतन पाने वाले लोको पायलट और रनिंग स्टाफ को डर है कि कहीं निजी करण होने से उनका वेतन घट ना जाए और संस्था कहीं उनसे अधिक काम ना लेने लग जाए ।सुविधाओ में कमी की आशंका के चलते ही ऐसे रेल कर्मचारी विरोध कर रहे हैं, जबकि सच तो यह है कि अगर कर्मचारी इसी तरह से विरोध और प्रदर्शन करते रहे तो कहीं इसी कारण से ही मजबूर होकर रेलवे को निजी हाथों में सौंपना न पड़ जाए। क्योंकि सरकारी कर्मचारियों का एक मनपसंद शगल आंदोलन भी है, जिससे छुटकारा निजी करण से ही संभव है।

